टूरी कहूं लछमी, त कहूं दुरगा देवी के रूप म जनम लेथे। डीह डोंगर, ससुरे-मईके दूनो कुल के मरियादा होथे। ये ह मोर अंगना के फूल-फुलवारी, मोर बेटी मोर हीरा ए। येला लिखाहूं-पढ़ाहूं बड़े साहेब बनाहूं, इही मोर डीह-डोंगर के दिया बरईया ए।
खद्दर के छानी म, दूनो परानी, अपन जिनगी के सुख-दुख ल घाम छइहां के खेल सही खेलत राहय। बने-बने म समय बीतत जल्दी पहा जथे, सुख के दिन पांखी लगा के लऊहा उड़ा जथे। बर-बिहाव संग-संग गवन-पठौनी होगे। भगवान जाते सांठ चिन डरिस। उही दिन के आवत ले अंगना म फूल फूलगे, निचट हरहुना तो होथे आजकल के लईकामन, अपन डीह डोंगर म दिया बरईया तो घलो चाही। सियान मन के कहना कोनो अबिरथा थोरे होथे। नाती-नतुरा के सुख देखे बर सास-ससुर, बुढ़वा सियान के मन लगे रहिथे, सियान बर खेलवना तो होथे लइकामन। लोग-लईका ले घर अंगना-ऊछाह मगन लागत रहिथे। नइते भुत बंगला बरोबर होथे घर-द्वार बिन लइका के लागथे संसार अंधियार। तभे तो चौथापन म राजा दसरथ के घर घलो लगे रहिस उजियार। समे पाके घर- अंगना म लइका के किलकारी गूंजे लागिस, पारा-परोस, समधी सजन जुर मिलके छट्ठी-बरही मनाई। सब लईका के मया म मोहागे।
फेर टूरी के ददा काम-बुता ले आवय जेवन करय, तहां ले गुम-सुम कुरिया म खुसर के, भीतरे-भीतर चुरत रहय। गोठ न बात, हंसी न ठिठोली, जानामाना रक्सा-भुतहा असन खटिया म सुते-सुते ऊपर कोती ल निटोरत, बटर-बटर देखत रहय। मिलकी घलो नई मारे, सब हलाकान, दवई, जरी-बूटी, बईगा-गुनिया, दिया-बाती सब देख डरिस, सरीर सुखा के कांटा होय लागिस। कोनो सेवा-जतन, तेल-मालिस, अउ टीका समे म लगावत हव की नहीं, पूछीस त सब अनबोलना होगे, ककरो मुंहू ले बक्का नई फुटत हे। तब मितानिन दीदी सब ल ओसरी-पारी समझाइस, लईका के सेवा कईसे करना हे, डॉक्टर ल कब देखाना हे, फेर लईका के ददा के मुंहू फूले के फूले हे। गुमसुम, गोठ न बात, जय न जोहार, मितानिन दीदी कहिथे, टूरी पिला के ददा तरमरागे, आंखी ल लड़ेर के कहिस, तोर भभकी म आयेंव, घेरी-बेरी जांच पड़ताल करवा के पूछ-पूछ के हमर माईलोगिन के कोख ल बिगाड़ देस अउ नाक ल ऊंच करके पूछे बर आए हस टूरी तो बियाये हे, इही संसो म रात-दिन घुरत हंव, लेवना सही चुरत हंव, डीह-डोंगर के दिया बरईयां, आंखी के पुतरी तो बेटा होथे न, फेर तोर भभकी म आके टूरी बियाये हे, ये बात ल सुन के मितानिन दीदी के तरपौरी के रीस तरवा म चढ़गे, ओकर जी आगी म बरगे, अरे तोर म दम हे, हिम्मत हे त बता, आज टूरी कोनो टूरा ले कमती हे का? टूरी मन घलो डॉक्टर, मास्टर, इंजीनियर के संगे-संग हवईजिहाज, रेलगाड़ी, मोटर-कार चलावत हें। ऊंच-ऊंच पहाड़ी म चढ़के इतरावत हे, देस के पहरादारी म घलो अपन किसमत चमकावत अपन भाग ल सहरावत हें। झांसी के रानी लछमीबाई, इंदिरा गांधी अउ कलपना चावला, बचेन्द्रीपाल अउ किरण बेदी जइसन तियाग अउ बलिदान करके इतिहास म अपन नाम उजागर करे हें।
नारी सक्ति के झन करव हिनमान रे।
हावय अधूरा गियान संगी मान तोर सनमान रे॥
भगवान ह टूरा-टूरी दूनो बर बरोबर-बरोबर हवा-पानी, खाना-दाना के बेवस्था करे हे, अरे करमछड़हा टूरी कहूं लछमी, त कहूं दुरगा देवी के रूप म जनम लेथे। डीह डोंगर, ससुरे-मईके दूनो कुल के मरियादा होथे, बिना कनियादान करे कहां मुकिति पाबे। लोक-परलोक ल कइसे सुधारबे, अतका बात ल सुनके टूरी के ददा के आंखी ले झर-झर आंसू ढरे लागिस, ओकर आंखी ऊघरगे, ओकर हिरदे म आनंद-मगन छागे। कहिस आज ले ये ह मोर अंगना के फूल-फुलवारी, मोर बेटी मोर हीरा ए, येला लिखाहूं-पढ़ाहूं बड़े साहेब बनाहूं, इही मोर डीह-डोंगर के दिया बरईया ए। दुनिया-दुनिया ल बताहूं, मारे उछाह मगन होके नोनी के ददा ह फौउज-फटाका, खीर-बतासा पारा-परोस म बंटवावत हे। तीज-तिहार देवारी बरोबर जुगुर-बुगुर दिया बाती चाराें डाहर झमाझम बरे लागे लगिस। ओकर मन के अंधियारी लजागे, नवां अंजोर छागे, काम बुता म मन रमगे, बेटी बर नवा-नवा अंगरखा, कापी-पेन, किताब के आगू-आगू ले बेवसथा करे लागिस। नोनी घलो बड़ गुनवंतीन, पढ़-लिख के सज्ञान होगे, ओकर नाम के सोर उड़े लागिस। हर तीज तिहार म नोनी अपन डीह-डोंगर म दिया बारय, पूजा-पाठ करय, अउ अपन पुरखा ले आसीरवाद लय। माटी के दिया तो बर के बुता जथे फेर मन के दिया के अंजोर ल कोनो आंधी-तूफान नई बुता सकय, ओ तो अजर-अमर अविनासी हे, नोनी गावत हे।
गांव के जम्मो मनखे का लइका, का सियान, संगी-संगवारी सब बड़ मयारूक होथे। ओमन एक दूसर के सुख-दुख म कबके जुरिया जथे। ऊंकर एक संग जिए-मरे के सपना होथे। एक-दूसर के दुख-पीरा ल अपने दुख-पीरा समझथे। नोनी के ददा के छाती फूले नई समावथे, समे पाके सुन्दर असन बर देख के नोनी के बिहाव कर दिस। ओकर जांवर-जोड़ी ल देखके सबे काहय, का सुन्दर राम-सीता सही जोड़ी फभे हे। ससुरे अउ मइके दूनो कुल के बीच ओकर सोर मोंगरा फूल सही महर-महर करे लागीस। हर बछर राखी, तीजा-पोरा, भाईदूज म गांव के गांव सब झन ल नोनी दुलौरिन के अगोरा म टकटकी लगाय रस्ता बाट जोहत रहयं…।
रामकुमार साहू ‘मयारू’
गिर्रा, पलारी